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उत्तराखंड की बड़ी आबादी के घर के चूल्हे में चारधाम यात्रा ईंधन का काम करती है, यह सिर्फ धार्मिक आस्था का ही नहीं बल्कि रोजी-रोटी का भी जरिया है

अरविंद गोस्वामी गौरीकुंड के रहने वाले हैं। ये वही जगह है जहां से केदारनाथ की पैदल यात्रा शुरू होती है। साल 2013 तक गौरीकुंड के मुख्य बाजार में अरविंद का एक होटल हुआ करता था। ‘गौरी शंकर’ नाम का यह होटल ही उनकी आय का मुख्य स्रोत था जो उस साल आई भीषण आपदा की भेंट चढ़ गया।

अरविंद बताते हैं, ‘वह आपदा हमारा सब कुछ बहा ले गई। मेरा 22 कमरों का होटल जहां था, अब वहां सिर्फ मलबा बचा। मुआवजे के तौर पर सरकार ने सिर्फ 3 लाख रुपए दिए, जिसमें होटल तो क्या दो कमरे भी नहीं बन सकते थे। उस नुकसान से अभी हम उभर भी नहीं सके थे कि ये कोरोना की महामारी ने फिर से कमर तोड़ दी है।’

अरविंद गोस्वामी की यह आपबीती केदार घाटी के हजारों अन्य व्यापारियों की भी कहानी कहती है। 2013 की आपदा में यहां के अधिकांश व्यापारियों की दुकानें, होटल, ढाबे आदि मंदाकिनी नदी के रौद्र रूप ने लील लिए थे। इस क्षेत्र के तमाम व्यापारी केदारनाथ यात्रा पर ही निर्भर हैं। लेकिन आपदा के दो-तीन साल बाद तक भी यात्रा बहुत हद तक प्रभावित रही लिहाजा इन व्यापारियों को हुए नुकसान की भरपाई भी समय रहते संभव नहीं हुई।

अरविंद बताते हैं, ‘साल 2016 और उसके बाद यात्रा ने कुछ रफ्तार पकड़ी तो हम सबने हिम्मत जुटाकर दोबारा काम-धंधा जमाने के प्रयास शुरू किए। बैंक से कर्ज लिया और होटल-दुकानें दोबारा बनानी शुरू की। मैंने भी 11 लाख का लोन लेकर पिछले साल कुछ कमरे बनवाए ताकि यात्रा के दौरान उन्हें किराए पर चढ़ा सकूं। लेकिन इस साल कोरोना की महामारी आ गई और यात्रा फिर से चौपट हो गई है। अब अगर सरकार कोई मदद नहीं करती है तो हम इस कर्ज की किस्त भी कैसे चुका पाएंगे?’

अरविंद गोस्वामी उत्तराखंड की उस बड़ी आबादी का हिस्सा हैं जिनके घर के चूल्हे में चारधाम यात्रा सीधे-सीधे ईंधन का काम करती है। यात्रा अच्छी हुई और यात्रियों की संख्या ज्यादा रही तो इस आबादी की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है और यात्रा मंद हुई तो इनकी आर्थिक स्थिति डगमगाने लगती है। यही डगमगाहट इस साल भी कोरोना की महामारी ने इन लाखों लोगों के जीवन में पैदा कर दी है।

सिर्फ होटल और दुकान चलाने वाले व्यापारी ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के लाखों अन्य लोग भी चारधाम यात्रा पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निर्भर रहते हैं। यात्रा शुरू होती है और मंदिर के कपाट खुलते हैं तो पंडे-पुरोहितों का बड़ा वर्ग बद्रीनाथ-केदारनाथ पहुंचता है जिनका परंपरागत काम यहां आने वाले यात्रियों की पूजा करवाना है। देवप्रयाग निवासी तुंगनाथ कोटियाल बताते हैं, ‘सिर्फ देवप्रयाग के ही करीब दो हजार परिवार बद्रीनाथ में पंडागिरी करते हैं और इनकी आय का एकमात्र स्रोत यही है। यात्रा के समय ही जो कमाई इन लोगों की होती है, उसी से साल भर का खर्च चलता है।’

हर साल अक्टूबर-नवंबर में केदारनाथ के पट 6 महीने के लिए बंद हो जाते हैं। अप्रैल-मई में अक्षय तृतीया के आसपास इन्हें खोला जाता है।

पंडों की तरह ही कई अन्य लोग भी हैं जिनके लिए सिर्फ छह महीने की यह यात्रा ही आय का मुख्य साधन होती है। इसमें चारधाम यात्रा पर चलने वाली टैक्सी भी शामिल हैं, घोड़ा-खच्चर चलाने वाले वे तमाम लोग भी जो प्रदेश के अलग-अलग इलाकों से अपने जानवर लेकर यहाँ पहुंचते हैं, वे सफाईकर्मी भी जो मैदानी इलाकों से छह महीने के लिए आते हैं और यात्रियों को अपने कंधे पर लादने वाले वे लोग भी जो अधिकांश नेपाल से यहां पहुंचते हैं।

इनके अलावा बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो प्रत्यक्ष नहीं परोक्ष रूप से यात्रा पर निर्भर रहते हैं। जोशीमठ निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अतुल सती बताते हैं, ‘यात्री कम होते हैं तो सिर्फ व्यापारियों का ही नहीं बल्कि किसानों का भी नुकसान होता है। हमने भी 2013 की आपदा के बाद ही इस पहलू पर ध्यान दिया। उस वक्त देखा गया कि यात्रा कमजोर रही तो गांवों में होने वाले राजमा, सेब, खुमानी जैसी तमाम चीजों के दाम बहुत कम मिले।’

ऐसा ही प्रभाव पहाड़ के उन तमाम गांव के लोगों पर भी पड़ता है जो मंदिरों में प्रसाद स्वरूप चढ़ने वाली चीजों का उत्पादन करते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता मोहित डिमरी बताते हैं, ‘रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी ने पिछले दो साल से यह व्यवस्था की थी कि गांव में उगने वाली चौलाई के लड्डू बनाए जाएं और इन्हें केदारनाथ मंदिर में प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाए। इससे गांव की सैकड़ों महिलाओं को रोजगार मिला था। इस साल इन तमाम महिलाओं के लिए भी रोजगार का संकट बन पड़ा है।’

उत्तराखंड राज्य को चारधाम यात्रा से 1200 करोड़ से ज्यादा का सालाना कारोबार मिलता है। यह राज्य की आय के मुख्य स्रोतों में से एक है। ऐसे में स्वाभाविक है कि राज्य की जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा इस पर निर्भर है। लिहाजा चारधाम यात्रा का प्रभावित होना यहां के लोगों के लिए सिर्फ धार्मिक आस्था का मुद्दा नहीं बल्कि रोजी-रोटी का अहम सवाल भी है। ऐसा सवाल जो आने वाले दिनों में लगातार विकराल होने जा रहा है।

जब केदारनाथ के पट बंद होते हैं तो भगवान को उखीमठ ले जाया जाता है। वहीं ओंकारेश्वर मंदिर में उनकी पूजा होती है। जब पट खुलते हैं तो इसके एक दिन पहले इन्हें पालकी में फिर से केदारनाथ लाया जाता है।

देशभर में चल रहे लॉकडाउन के बीच ही केदारनाथ मंदिर के कपाट 29 अप्रैल को खुलने जा रहे हैं। आमतौर पर कपाट खुलने वाले दिन जहां केदारनाथ मंदिर में 15 से 20 हजार लोग मौजूद होते हैं वहीं इस बार अनुमान लगाया जा रहा है कि यह संख्या शायद मात्र 15 से 20 लोगों तक ही सीमित कर दी जाए। सिर्फ रावल, पुजारी, धर्माधिकारी और कुछ हकहकूकधारी जैसे वे ही लोग इस दिन शामिल हों जिनकी उपस्थिति पारंपरिक तौर से इस आयोजन में अनिवार्य मानी जाती है।

आम जनता के लिए यात्रा खोली जाएगी या नहीं, इसका फैसला आने वाले दिनों में राज्य सरकार करेगी। लेकिन देशभर में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए इसकी संभावनाएं बेहद कम ही हैं कि यात्रा बड़े पैमाने पर हो सकेगी। चारधाम यात्रा के लिए मई और जून का महीना सबसे अहम होता है। बरसात शुरू होने से पहले इन्हीं दो महीनों में सबसे ज्यादा यात्री यहां पहुंचते हैं और इसके लिए काफी पहले से ऑनलाइन बुकिंग शुरू हो जाती हैं। यह बुकिंग इस बार भी काफी पहले हो गई थी लेकिन लॉकडाउन के बाद यह उतनी ही तेजी से कैंसिल भी हो चुकी हैं।

यात्रा के इस तरह रद्द होने का सकारात्मक पहलू भी है जिसकी ओर इशारा करते हुए अतुल सती कहते हैं, ‘पर्यावरण की दृष्टि से बद्रीनाथ-केदारनाथ बहुत संवेदनशील इलाके हैं। इन इलाकों को अगर किसी भी बहाने एक साल आराम करने का मौका मिलता है, यहां का बोझ काम होता है तो यह अच्छी बात है। वरना हम लोगों ने इन जगहों पर मानव हस्तक्षेप की सभी सीमाएं पार कर दी हैं और इसके खतरे हम 2013 में केदारनाथ में देख भी चुके है। जो वर्ग आर्थिक तौर से यात्रा पर निर्भर है उसके लिए अगर सरकार उचित व्यवस्था कर सके और उस वर्ग के सामने खड़ी आर्थिक चुनौती से अगर निपटा जा सके तो बद्रीनाथ-केदारनाथ के लिए पर्यावरण के नजरिए से यह लॉकडाउन सम्भवतः अच्छा है।’



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26 अप्रैल को फूलों से सजी पालकी में भगवान शिव की प्रतिमा उखीमठ से रवाना हो चुकी है। पालकी फाटा और गौरीकुंड होते हुए 28 अप्रैल को केदारनाथ पहुंचेंगी। इसके बाद 29 अप्रैल को मंदिर के पट खोल दिए जाएंगे।


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