Skip to main content

डॉक्टर की सलाह- इस वक्त मां से ज्यादा बात करें, इमोशनली सपोर्ट करें, उनके पसंद का काम करें, ताकि वाे पॉजिटिव रहें और डिप्रेशन में न आएं

दुनिया भर में इस बार मदर-डे का सेलिब्रेशनकोरोनावायरस के साये में चल रहा है। मदर-डे का यह 113वां साल है। लेकिन, फर्स्ट वर्ल्ड वॉर और सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद शायद यह तीसरा मौका है, जब मांएं सबसे ज्यादा डरी, सहमींहुई हैं। तमाम मां हेल्थ वर्कर्स,पुलिस, मीडिया पर्सन और अन्य जरूरी सेवाओं में हैं।इसके चलते उन्हें बाहर भी निकलना पड़ रहा है। तमाम मांएं घरों में कैद हैं।
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस(एम्स)में रुमेटोलॉजी डिपॉर्टमेंट में एचओडी डॉ. उमा कुमार कहती हैं कि इस वक्त हमें अपनीमांओंकी फिक्र करनीहोगी, चाहे वेघर पर रह रही हैं, या बाहर निकल रही हैं। हमउनकी पसंद का काम करें, ताकि वे खुश और निश्चिंत रहें।

डॉ. उमा बता रही हैं कि आप कैसे और किन तरीकों सेमां को सपोर्ट, मोटिवेट और अवेयर कर सकते हैं।और मांओं को किन बातों काध्यान रखनाचाहिए-

लगातार घर में रहने से तनाव बढ़ा, इसलिए मां से ऐसीबात न करें, जिससे उनमें निगेटिविटी आए

  • यह मदर-डे कोरोना और लॉकडाउन के बीच गुजर रहा है। इसलिए आप मां के लिए इस बार पहली जैसी कई चीजें नहीं कर पाएंगे। ऐसे में इस बार मां को खुशी और सुकून देने के लिए कई नई चीजें एक्सप्रेस कर सकते हैं।
  • मां को हाथ से लिखा हुआ कार्ड दे सकते हैं, उन्हें पूरे दिन काम से रेस्ट दे सकते हैं, आप उनके लिए कुकिंग कर सकते हैं, जो चीजें वो पसंद करती हैं, उसे कर सकते हैं। आज के दिनउनके साथ टाइम बिताएं, उनके साथ उनकी पसंद की मूवी देखें, उनसे मेमोरी शेयर करें, उनका बर्डन शेयर करें। इससे मां को खुशी मिलेगी, क्योंकि मां छोटी-छोटी चीजों से ही खुश हो जाती हैं।
  • इस बात की कोशिश करें कि मां में तुम्हारी किसी बात से निगेटिविटी न आए।उनसे ज्यादा से ज्यादा बात करें, ताकि वे डिप्रेशन में न आएं। उन्हें इमोशनली भी सपोर्ट करें, ताकि पॉजिटिव रहें।

बुजुर्ग मांओं का सबसे ज्यादा ध्यान रखने की जरूरत हैं, बाहर से आने पर उनसे सीधे न मिलें

  • डॉ. उमा कहती हैं कि एक मां के नाते यदि मैं कहूं तो जो बच्चे लॉकडाउन के चलते घर से दूर फंस गए हैं। उनकी मां सबसे ज्यादा फिक्रमंद हैं। मां सब बच्चों का ख्याल करके चलती हैं, तो जो बच्चे उनके साथ हैं, जो बड़े हैं, जो छोटे हैं, इस वक्त उन्हें इन सभीकी चिंता है कि कहीं इन्फेक्शन न हो जाए। मां बच्चों से बार-बार कह रही हैं कि बाहर से कोई चीज न लाएं। इसलिए उनकी बातों को आप मानें, इस वक्त थोड़ा कम खाएं, लेकिन प्रोटेक्शन रखें। जहां तक हो सके बाहर न जाएं, बाहर से कोई चीज न लाएं।
  • दूसरी बात, इस वक्त ओल्ड ऐजमदर की बहुत ध्यान रखने की जरूरत है, क्योंकि बुजुर्गों की कोरोना से मृत्युदर सबसे ज्यादा है। इसलिए समझदारी इस बात में है कि ऐसी मांओंके साथ रहने वाले लोग घर में सोशल डिंस्टेंसिंग का पालन करें। यदि आप बाहर से आते हैं तो सीधे आकर बुजुर्ग मांओं से न मिलें।
  • इन दिनों बच्चों के स्कूल बंद भी हैं।इससे भी मांओं को बच्चों के साथ काफी वक्त मिल रहा है। बहुत सी मां ऐसी भीहैं, जिन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वे क्या करें। क्योंकि पूरे दिन बच्चे घर पर हैं, ऑनलाइन क्लास भी चल रही हैं, मेड नहीं आ रही है।ऐसे में उन्हें अपने लिए वक्त नहीं मिल रहा है। इसलिए भी उन्हें टेंशन हो रही है। इसलिए बड़े बच्चों को मां की हेल्प करना जरूरी है।
  • डॉ. उमा कहती हैं किएक डॉक्टर मदर होने के नाते मैं जब घर आती हूं तो हमेशा डर बना रहता है कि इन्फेक्शन तो नहीं है, क्योंकि दिनभर बहुत सारे लोगों से मिलना होता है। मुझसे मेरे घर वालों को कुछ न हो जाए।

कोरोना से मांओं के साइको इमोशनल कंपोनेंट पर भी असर पड़ रहा है, इससे उनमें निगेटिव थॉट भी आ रहे हैं

  • डॉ. उमा बताती हैं कि उनका बेटा बेंगलुरू में है, वह एमबीए कर रहा है और वहां फंस गया है। उसके हॉस्टल में 200 बच्चे रहते हैं, लेकिन अब सिर्फ 20 से 22 बच्चे ही बचे हैं। ऐसे में उन्हें यह चिंता बनी रहती है कि बेटा क्या मास्क लगा रहा है, खाना खा रहा है कि नहीं। क्योंकि अभी कैंटीन बंद है, होमडिलीवरी हो नहीं रही है, यदि मिल भी रही है तो क्या गारंटी कि वह इंफेक्टेड नहीं है।
  • कई बार बच्चे मां को दुखी नहीं करने के लिए झूठ भी बोल देते हैं। इसलिए कोरोना का मांओं के साइको इमोशनल कंपोनेंट पर भी असर पड़ रहा है। इससे उनमें निगेटिव थॉट भी आ रहे हैं।
  • इस बचने के लिए बच्चों और मांओं को एक-दूसरे से वीडियो काॅल, वॉट्सएपकॉल या सामान्य कॉल पर बात करनी चाहिए। ऐसा दिन में कम से एक बार तो कर ही लेना चाहिए। यूथ में अकेले रहने की वजह से एडिकशन भी आते हैं, जैसे वे अल्कोहल, स्मोकिंग कर सकते हैं। इसलिए भी मांएं चिंतित हैं।

जरूरी सेवाओं के लिए काम करने वाली मांओं को फैमिली और सोसाइटी के सपोर्ट की जरूरत है

  • जो मां जरूरी सेवाओं में बाहर हैं, चाहे डॉक्टर्स हैं, पुलिस हैं या मीडिया पर्सन हैं। पहली बात तो ऐसी मांओं को फैमिली सपोर्ट की जरूरत है। उन्हें इमोशनली सपोर्ट की भीजरूरत हैं, क्योंकि वे खुद ही चिंतित हैं कि उनकी वजह से घर में कोई संक्रमित न हो जाए। इसलिए बतौर फैमिली ऐसी मांओं की पोजिशन को समझने को कोशिश करें। उन्हें पॉजिटिव रखें। उनकी सेहत का भी ध्यान रखें। क्योंकि कई बार उन्हें खाने के लिए भी वक्त नहीं मिल पा रहा है।
  • सोसायटी में रह रहे लोगों की भी जिम्मेदारी है कि ऐसी मांएं जो उनके आसपास रहती हैं, उनके साथ भेदभाव न करें। बल्कि उनका और ज्यादा रिसपेक्ट करें। ऐसे मांओं से जुड़ी फैमिली को भी सपोर्ट करें।इसके अलावा मरीजों के परिजन डॉक्टर, हेल्थ वर्कर्स से मिलने पर उन्हें महसूस कराएं कि वे उनके लिए अहम हैं। साथ ही उनसे दूर से ही बात करें, सैनेटाइजर का इस्तेमाल करें। ताकि उन्हें वायरस का खतरा न हो। उन्हें ब्लैकमेल करने की भी कोशिश न करें।

प्रेग्नेंट और छोटे बच्चों की मांएंहाई रिस्क कैटेगरी में हैं, इन्हें इम्युनिटी बढ़ाने की सलाह देनी चाहिए

  • प्रेग्नेंट महिलाओं और जिनके बच्चे छोटे हैं, इन्हें हाई रिस्क कैटेगरी में रख गया है। इसलिए इन्हें कई जरूरी बातों का ध्यान दिलाएं। जैसे- डिस्टेंस मेंटेनकरें, बाहर वालों से न मिलें, दरवाजा खोलने से बचें, मास्क का इस्तेमाल करें, बाहर से आई चीजों को छूने के बाद हाथ जरूर धोएं या सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें। अपने खानपान का ध्यान रखें।
  • ऐसी मांओं को इम्युनिटी बढ़ाने के लिए बोलें। आयुष मंत्रालय की गाइडलाइन पढ़ने को कहें। ऐसी मांएं खुद भी खुश रहें, स्ट्रेस न करें, पॉजिटिव रहें। सात से आठ घंटे नींद लें। पॉजिटिव चीजें पढ़ें, बार-बार टीवी पर कोरोना की खबरें न देखें। सोशल मीडिया पर फेक खबरों से बचें। जिस काम में मजा आता है, वो काम करें।

माइग्रेंट वर्कर्स मांओं को वॉलिंटिरी सपोर्ट की जरूरत है, उन्हें इस बीमारी के बारे में जागरूक करें

  • सबसे ज्यादा तकलीफ में माइग्रेंट लेबर्स हैं। इनमें तमाम मांएं भी हैं। सरकार, एनजीओ, सोसाइटी को चाहिए कि उन्हें खाना मुहैया कराएं। उन्हें बताएं कि जहां हैं, वहीं रहें। यदि मास्क नहीं है तो ऐसी मांओं को साड़ी या डुपट्‌टे को ही तीन बार मोड़कर मुंह पर लपेटने की सलाह दें। बच्चे को खिलाने से पहले साबुन से हाथ धोएं। भीड़भाड़ से दूर रहें।
  • यदि आपसे रास्ते में ऐसी कोई मां मिल रही है, तो उन्हें समझाएं कि क्या करें, क्या न करें। ऐसे लोगों को अभी वॉलिंटिरी सपोर्ट की जरूरत है। किसी को साबून दे दिया, कपड़े दे दिए, खाना दे दिया। उनके डर को निकालना जरूरी है।
  • ऐसी तमाम मांइसलिए भी दहशत में हैं, क्योंकि उन्हें नहीं मालूम है कि यह बीमारी क्या है?उन्हें लग रहा है कि पता नहीं क्या होगा?मानों,दुनिया खत्म होने वाली है। उन्हें बताएं कि इस बीमारी से सिर्फ तीन से चार फीसदी लोगों की ही जान जा रही है।

बच्चों के भविष्य को लेकर मांओं को चिंतित होने की जरूरत नहीं है, इस वक्त बस बच्चों में अच्छी आदतें डालें

  • डॉ. उमा बताती हैं कि कुछ मांएं बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं, ऐसी मांओं से मैं कहना चाहती हूं कि अगर जान है, तो सबकुछ है। यदि बच्चे का एक साल खराब भी हो जाता है, तो इससे कुछ नहीं होगा। सभी बच्चे एक पायदान पर हैं।
  • मांओं को इस वक्त बच्चों को समय के उपयोग करने के लिए बोलना चाहिए। बच्चों को मोटिवेट करें, अच्छी आदतें डालने और अनुशासन सिखानेकी कोशिश करें। यह वक्त भीगुजर जाएगा, बहुत दिनों तक रहने वाला नहीं है। इसलिए सबसे पहले बचना जरूरी है।

डाइबिटीज, हाइपरटेंशन, ब्लड प्रेशर या अन्य बीमारी से पीड़ित मांओं को सबसे ज्यादा एहतियात की जरूरत

  • डाइबिटीज, हाइपरटेंशन, ब्लड प्रेशर, किडनी की बीमारी या किसी अन्य बीमारी से पीड़ित मांओं को इस वक्त सबसे ज्यादा एहतियात बरतने की जरूरत है, उन्हें घर में रहने की जरूरत है। क्योंकि उनमें मेंटल इलनेस बढ़ रहा, चिड़चिड़ापन और निगेटिविटी आ रही है।
  • इसके अलावा मांओं का बाहर निकलना जरूरी होता है और इस वक्त ऐसा हो नहीं पा रहा है। बच्चे घर पर हैं, बाकी फैमिली घर पर है, तो मांओं को रिलैक्स का वक्त नहीं मिल पा रहा है। इससे चिड़चिड़ापन, गुस्सा बढ़ रहा है, नींद नहीं पूरी हो रही है, इससे उनमें एग्रेशन, डिप्रेशन और बेचैनी आ रही है। इससे निकलने के लिए योग की प्रैक्टिस करें। पॉजिटिव सोचें।

मांओं को बीमारी के बारे में समझाएं कि इससे पीड़ित 95-96% मरीज ठीक हो जाते हैं

  • मांओं को यह जानना जरूरी है कि कोरोना एक वायरस है। 95-96% मरीज इस बीमारी से ठीक हो जाते हैं। सिर्फ3से 4फीसदी मरीजों की ही डेथ हो रही है। उन्हें बताएं कि लॉकडाउन इसलिए किया गया है, ताकि लोगों का मिलना-जुलना कम हो। इससे घबराने की जरूरत नहीं हैं, यह वायरस भी चला जाएगा जैसे खांसी- जुकामचला जाता है। दुनिया खत्म नहीं होने वाली है। बस कुछ महीने हमें प्रीकॉशन बरतने की जरूरत है।
  • उन्हें बताएं कि इसके कई फायदे भी हैं। वातावरण साफ हो गया, लोग अन्य बीमारियों से कम मर रहे हैं। पहले जो मौतें रेसपीरेटरी डिसीज की वजह होती थीं, वो कम हो गई हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि लोग घर में हैं। प्रदूषण कम हो गया है।


आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Happy Mothers Day 2020/Coronavirus Outbreak Latest News Updates; Spend Quality Time With Maa During Lockdown


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2Le8n9f
via IFTTT

Comments

Popular posts from this blog

86 नए पॉजिटिव केस मिले, कुवैत से शव नहीं आ पाया तो पुराने कपड़ों से शव बनाकर दाह संस्कार किया, ताकि राख तो नसीब हो

राजस्थान में गुरुवार को 86 नए पॉजिटिव केस सामने आए। जिसमें जोधपुर में 59, जयपुर में 14, अजमेर में 4, चित्तौड़गढ़ में 3, टोंक और कोटा में 2-2, धौलपुर और अलवर में 1-1 संक्रमित मिला। जिसके बाद कुल संक्रमितों का आंकड़ा 2524 पहुंच गया। इसके साथ जयपुर में एक मौत भी सामने आई। जयपुर में चांदी की टकसाल के पास रहने वाले 67 साल के बुजुर्ग की हुई। वहीं इससे पहले देररात भी मौत के 4 मामले सामने आए थे। जिसमेंतीन महिलाएं और एकपुरुष शामिल थे। कुवैत से शव नहीं आ पाया तो पुराने कपड़ों से शव बनाकर अंतिम यात्रा निकाली, दाह संस्कार भी किया, ताकि राख तो नसीब हो कोरोना के कहर के बीच एक झकझोर देने वाला मामला बुधवार को डूंगरपुर के सीमलवाड़ा कस्बे में सामने आया। 15 साल से कुवैत में व्यवसाय कर रहे होटल व्यापारी 56 वर्षीय दिलीप कलाल की कुवैत में माैत हाे गई। दो दिन रिपोर्ट के इंतजार के बाद बुधवार को उनकी रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई। इस पर उनका शव कुवैत में ही दफनाया गया। सीमलवाड़ा निवासी दिलीप पुत्र पद्मजी कलाल को तेज बुखार आने पर कुवैत के अमीरी अस्पताल में भर्ती कराया था। 15-20 दिन से उनका इलाज चल रहा था। इधर, मृत...

रथयात्रा पर सस्पेंस, लॉकडाउन बढ़ा तो टूट सकती है 280 साल की परंपरा या बिना भक्तों के निकलेगी रथयात्रा

लगभग 280 साल में ये पहला मौका होगाजब कोरोना वायरस के चलते रथयात्रा रोकी जा सकती है। ये भी संभव है कि रथयात्रा इस बार बिना भक्तों के निकले।हालांकि, इस पर अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। 3 मई को लॉकडाउन के दूसरे फेज की समाप्ति के बाद ही आगे की स्थिति को देखकर इस पर निर्णय लिया जाएगा। 23 जून को रथ यात्रा निकलनी है। अक्षय तृतीया यानी 26 अप्रैल से इसकी तैयारी भी शुरू हो गई है। मंदिर के भीतर ही अक्षय तृतीया और चंदन यात्रा की परंपराओं के बीच रथ निर्माण की तैयारी शुरू हो गई है। मंदिर के अधिकारियों और पुरोहितों ने गोवर्धन मठ के शंकराचार्य जगतगुरु श्री निश्चलानंद सरस्वती के साथ भी रथयात्रा को लेकर बैठक की है, लेकिन इसमें अभी कोई निर्णय नहीं हो पाया है। नेशनल लॉकडाउन के चलते पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से पुरी मंदिर बंद है। सारी परंपराएं और विधियां चुनिंदा पूजापंडों के जरिए कराई जा रही है। गोवर्धन मठ (जगन्नाथ पुरी) के शंकराचार्य जगतगुरु स्वामी निश्चलानंदजी सरस्वती ने मंदिर से जुड़े लोगों को सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार करते हुए रथयात्रा के लिए निर्णय लेने की सलाह दी है। मठ का मत ही इसमें सबस...

रविशंकर ने कहा- सब काम बिगड़े, तब भी हिम्मत नहीं हारने वाला, मुस्कुराने वाला ही सफल है

हार्ट टू हार्ट की चाैथी कड़ी में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर से कॉमेडियन कपिल शर्मा ने बात की। उन्हाेंने जीवन में सफलता से लेकर सकारात्मकता हासिल करने जैसे कई सवाल किए। उन्हाेंने श्री श्री से जाना कि माेह और प्रेम में क्या अंतर है। मुख्य अंश... सवाल: हम जीवन में सकारात्मकता चाहते हैं, लेकिन नकारात्मक चीजें ही क्याें आकर्षित करती हैं? नकारात्मकता से ऊपर उठना ही हमारे लिए चुनाैती है। बच्चाें में ऐसी बात नहीं हाेती। उनमें हमेशा सकारामकता अधिक हाेती है। बड़े हाेकर हम नकारात्मकता में दिलचस्पी लेने लगते हैं, लेकिन यह ज्यादा दिन नहीं टिकती। हमें उसे नजरअंदाज कर देते हैं। सवाल: किसी के पास बहुत है, कोई खाली हाथ? यह लेनदेन की दुनिया है। किसी के पास देने के लिए है, ताे किसी काे लेना भी पड़ेगा। जिस तरह फिल्म में सब तरह के भूमिकाएं हाेती हैं, उसी तरह यह दुनिया है। ईश्वर फिल्म के डायरेक्टर हैं। वे साम्यवादी नहीं है, जाे सबकाे एक सा बना दें। सवाल: क्या देर रात तक काम करना सही है? रात में काम करने से काेई परेशानी नहीं, लेकिन जब भी जागें, 10 मिनट चिंतन, मनन, ध्यान करें। मैं इसे मेंटल हाइज...